Blog : थोड़ी तकलीफ तो होगी... !

श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी!

आज हर कोई यही ज्ञान पिला रहा है कि नोटबंदी/कैशलेश से थोड़ी तकलीफ होगी लेकिन झेल लीजिए क्योंकि इस से राष्ट्रनिर्माण होना है।

मेरी ये मांगे भी राष्ट्र का निर्माण करेगी अगर नोटबन्दी की तरह इन्हें भी एक झटके में लागू करवा दें :-

1. हम तैयार है ये "थोड़ी तकलीफ" झेलने केलिए, लेकिन ये बताइये हर बार ये त्याग की रसीद जनता के ही नाम क्यों कटती है?

सब्सिडी छोडे जनता, टैक्स दे जनता, बैंक की लाइन में लगे जनता, तय तारीख से पहले केबल हटा के DTH लगाए जनता..!!

ये राष्ट्रनिर्माण का कद्दू हर बार जनता के सर पर ही क्यों कटता हैं। आम जनता ऐसा क्या छिपा के बैठी है की सब यहीं से निकलेगा। संसद में लगभग फ़ोकट का खाना क्यों नही बन्द होता ।

इसको बन्द करवाने से थोड़ी तकलीफ तो होगी परन्तु राष्ट्रनिर्माण भी होगा।

2. ऐसा क्यों नहीं करते मोदी जी कि राजनैतिक दलों को 20,000 तक के चंदे के दानदाता का नाम बताना पड़े। आपकी जमात के बागड़बिल्लों को थोड़ी तकलीफ तो होगी, चुनावी रैलियों में हेलीकॉप्टर नहीं उड़ पाएंगे, एक नेता के लिए पचास-पचास, सौ-सौ कारों के काफिले नहीं जुट पाएंगे।

थोड़ी तकलीफ तो होगी... लेकिन "राष्ट्रनिर्माण" होगा।

3. मोदी जी सरकार उद्योग घरानों को कई कई लाख करोड़ की टैक्स रिबेट दे देती है, इनके जुर्माने माफ़ कर देती हैं, औने पौने दाम पे इन्हें प्राकृतिक सम्पदाएँ दे दी जाती है इसे बंद किया जाए। हाँ इन अय्याश धनकुबेरों को थोड़ी तकलीफ होगी, हो सकता है आपको भी थोड़ी तकलीफ हो... लेकिन "राष्ट्रनिर्माण" होगा ।

4. ऐसा क्यों नहीं करते कि रिश्वत के लिए काम अटकाने वाले अफसरों और सरकारी कारिंदों पर हर काम और हर केस की तय सीमा बनवा दें। हाँ इस से इन मुटल्लों के बीपी शुगर ज़रूर कुछ ऊपर नीचे होंगे लेकिन "राष्ट्रनिर्माण" होगा ।

5. जनता को टोल के नाम पर ठगा जाता है और टोल रोड पर मजबूर किया जाता है चलने को। जो की संविधान में दिए मौलिक अधिकार का भी हनन है। जनता ही tax दे सड़कों के निर्माण हेतु, नेता और टेंडर माफिया मिलकर उसको डकारें, और फिर जनता ही उस पर चलने का टोल भी दे? क्यों नही इन्हें बन्द किया जाता जो की सरकार की नही नेताओं की जेब भर रहे है। आपकी और बाकी पार्टियों के नेताओं का काला कारोबार बन्द हो जाएगा... थोड़ी तकलीफ होगी... लेकिन "राष्ट्र निर्माण" तो होगा ।

6. क्यों न ये नियम बना दिया जाए की जो राजनीति में आना चाहता है भले ही आये लेकिन उसको 50-50 सुरक्षा कर्मियों का घेरा नही मिलेगा जो सिपाही और पुलिसकर्मी नौकरी जनता को सुरक्षा देने के नाम पर करते है और जनता को सिर्फ उसके ही हाल पर छोड़ दिया जाता है। इससे नेताओं को तकलीफ होगी ...लेकिन "राष्ट्र का निर्माण" होगा।

है आपके पास या आपके अंधभक्तों के पास इन बातों का कोई जवाब?

हम तो भोली भाली जनता है, सरकार जो भी नियम लागू करेगी हमें तो मानना ही होगा। लगता है जनता, जनता न हुयी द्रोपदी का चीर है जो जब जिसके मन में आता है वो ही खिंचने लगता है।

ये सब्सिडी देता कौन है? जनता ने भीख मांगी थी क्या सब्सिडी के लिए? और फिर इस भीख को छीनते हुए बेज्जती करना जनता कि बन्द कीजिये यह कहकर कि आज 2G वाले सब Line में लगे हैं?

"राष्ट्रनिर्माण" का लॉलीपॉप सब में बराबर बाँटे.....

भक्तों यह पढ़कर लिखने वाले को न कोसे, तटस्थ होकर सोचें, थोड़ी तकलीफ तो होगी ... परन्तु राष्ट्रनिर्माण तो होगा।
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